कपास का फायदेमंद विज्ञान

प्रा. डॉ. वि.सु. बावसकर (अनुवाद - डॉ. विद्युत लक्ष्मणराव कातगडे)


'नकदी उपज' में कपासकी कृषि अग्रणी होते हुए 'सफेद सोना' कहलाता महत्त्व रखती है । देशमें कपास उगाने में प्रयुक्त भूमिमेंसे प्राय : १ / ३ जमीन अकेले महाराष्ट्र के अधीन है, जहाँ लगभग २५ -२७ लाख हेक्टर क्षेत्रपर यह फसल पैदा होती हैं। इसमें अधिकतर जमीन जिरयतके अधीन और मात्र ३ - ४ % क्षेत्र बागायत में आती है। मूलत: जहाँ गर्मियों में पैदावार लेते हैं। बस वहीं कम पानी के सहारे, व् ६ माह की बागायती खेतीसे कपासकी अच्छी उपज मिलाती हैं। अत: अर्थार्जनहेतु ये फसल बड़ी अहमियत रखती है। नये, उन्नत तरीकोंसे कपासकी यथासंभव अधिक उपज लेनेका ध्येय हितकर हैं।

आब - ओ - हवा : कपास - फसलके लिये पूरे समयावर्धिमें ५०० - ६०० मिलीमीटर वर्षा जरूरी होती हैं। इसमें से बोआई के समय ७५ - १०० मिलिमीटर वर्षा व १५ डी. सेल्शिअस तापमान आवश्यक होते हैं। पौधेकी शारीरिक वृद्धिके लिये २१ - २८ डी. सेल्शिअस तापमान जरुरी है। कपास के पौधेमें अधिक फुल खिल पाएं, इसलिये दिनमें तापमान २४ -२८ डी. सेल्शिअस एवं रात्रिमें २० - २१ डी. सेल्शिअस होना हितकर हैं। रातमें २४ डी. सेल्शिअस ऊँचे व दिनमें ३० डी. सेल्शिअससे ऊँचे तापमानसे फूल व पत्तियाँ झडने की प्रवृत्ति बढती हैं।

जमीन : कपास की खेती हेतु जमीन के चयन में ही 'काली कपासकी जमीन' ऐसा लक्षण मिलेगा. किन्तु कपासकी बागायती खेती के लिये मध्यम जातीकी, पानी का अच्छा निकास हो ऐसी, ७ - ८ तक सामू (PH) युक्त व १% से अधिक सेंद्रिय कर्बतत्वावाली मिट्टी का चुनाव करना उचित हैं। किन्तु मौसमी कपास के लिये मध्यम से भारी जमीन सही है। मौसम पूर्व कपास की खेती मई माह में होने से अत्यंत हलकी या गाढी, काली जमीन में किये प्रयासमें जलव्यवस्थापनमें समस्याएं आ सक्ती हैं । अत: उचित रीतीसे जमीन का चयन हो।

जमीन की पूर्व तैयारी : गहरी जोताईपर ३ - ४ बार मिट्टी पलटनेके बाद जमीन भुरभुरी होगी । पौधों की जडें मिट्टी में गहरी पहुँचे, इसलिये ये जरुरी हैं । कपासकी खेतीहेतु की अंतिम 'मिट्टी - पलट ' पूर्व - पश्चिम दें, तो बोआई में अडचन न होगी, इसी पलटेमें ३ - ४ टन / एकड कम्पोस्ट या खूब सड़ी गोबरकी खाद मिला दें।

जमीन पूर्व तैयारी : हलसे जुताई से पूर्व कपास न बोएं, क्योंकि अल्प जल - संकट हो, तोभी जमीन से पैदावार में भारी कमी होगी। वहीं गेहूँ इससे पूर्व लिया हो, तो १ - १.५ ट्रॉली गेहूँ की कुट्टी / एकड खेतमें मिला दें, तो जलसंकट में जमीन कम ऊबडखाबड़ होगी, फलत: जमीन से कमही मात्रामें नमी उड़ेगी। ।

बोआईमें समयनिर्धारणका विचार : मौसमपूर्व कपास बोआई के बारे में वैसे सोचविचार होताही नही अत: अक्षय्यतृतीयासे लेकर मई के अन्त/जूनके १ ले हफ्ते तक कपास बोआई चलती रहती हैं, जबकि पौधे के शारीरिक ज्ञानकी सोचें, तो विवेकपूर्ण समयनिर्धारण होगा । (कुछही प्रजातियाँ छोड़) शेष किस्मों में बोआई के ३० - ३५ दिनमें पात निकल आना, ५० - ५५ दिनमें फूल खिलना, ६० दिनोमें कोये लगना व १२० दिनों में कोये फुटके कपास चुन नेकी बारी आना, ये पौधोंकी समय सारिणी होती है।

यदि १ - १० मई को कपास की बोआई हो, तो कोये फूटने की अवस्था १० सितम्बरको रहेगी । कपास क्षेत्र में अगस्त - सितम्बर प्राय: शर्तिया भारी वर्षाके दिन होते हैं । पुन: मराठवाडा संभागमें लौटता मॉन्सून भी जोरदार रहता है। वर्षामें भीगते कोये सड़ने का यही आरम्भ है। खुलते कोयोंमेंसे झोंकता रूई भीगे, ये भी बड़ी हानिको न्योता है। स्वस्थ कोये बिगड़नेसे आर्थिक क्षति होती है। मौसमपूर्व कपास का बोआई समय २० - २५ मई निर्धारित हो, उससे पूर्व नही। सिंचित कपासकी बोआई निम्नांकित २ तरीकों से करें -

१) धूल बोआई : इसमें देसी किस्मके बीजकी बोआई मात्र इसलिये की जा सकती है, कि बीज कम खचींला है, वर्षा न हुई / अपर्याप्त हुई, तो होनेवाली क्षति सीमितही रहे।

२) वर्षा के उपरान्त : वर्षाऋतु आरंभमें सर्वप्रथम जो बीज बोये जाएं, उनमें कपास, मूँग व् उर्द अग्रणी है कपासहेतु समयबद्ध बोआईका ख्याल रखना चाहिये, यद्यपि ७५ - १०० मिलिमीटर वर्षा हो चुकने की शर्तपर भी ध्यान अवश्य दिया जाए। बोआई में त्रुटिसे क्षतिकी गुँजाइश रहती है।

बीज - संशोधन प्रक्रिया : कपास की खेती से पूर्व बी - शोधनसे कीट/ रोग नियत्रण, सूक्ष्म अन्न - तत्त्व व्यवस्थापन सुनियोजित रहेगा। इसहेतु निम्नांकित बीज शोधन प्रक्रियाएं करें.

१) जर्मिनेटर २५ - ३० मि.लि. + प्रोटेक्टंट १० ग्रॅम + २५० मि.लि. पानी ये घोल १ किलोग्रॅम बीजमें मिलाएं, जिससे अंकुरण, जल्द व अधिक प्रमाण में होगा।

२ ) बाजार में उपलब्ध बीज प्राय: 'इमिडाक्लोप्रीड' नामक कीटनाशक से संशोधित होता है। यदि न हो, ता इमिडाक्लोप्रीड थायोमिथाक्झाम '(मेंसे एक) कीटकनाशक ७.५ ग्रॅम / किलोग्रॅम बीज से शोधन हेतू मिलाएं। इन मात्राओंमें शोधन किये बीज से आयी पौधमें रस सोखानेवाले कीट पनप नही पाएंगे ।

बोआई के लिये किस्मों का चुनाव : कपास के हर किस्मकी बोआईसे पूर्व उस किस्मविशेषका वृद्धिचक्र जानकर तभी सही चुनाव करना चाहिये । सभी किस्में बी.टी. १ व बी.टी. २ इन खास प्रकारोंमें उपलब्ध हैं ।

१) मौसम पूर्व (२५ मई से १० जून) : लम्बे कालावधिकी किस्में यथा महिको - ७३५१, पारस, ब्रह्मा, जेके - ९९, राशी - २, अजित - ११, गब्बर, छत्रपती आदि.

२) मौसमी (१० जून से ३० जून) : अजित - ५, मल्लिका, बन्नी, महाशक्ती, कॅश, कृषिधन - ९६३२, प्रतीक, मार्गो, महिको - १६२, सिग्मा-६, एनकाऊंटर, दुर्गा, विश्वनाथ, नांदेड - ४४ आदि.

३) विलम्बसे बोआई हेतु (१ जुलै से १५ जुलै) : महिको - ५१६६, किसान अली, डायना, नांदेड - ४४ आदि

४) अन्य परिष्कृत किस्में : बी. एन. - १ (बि.टी.) एल. आर. ए. - ५१६६ रजत, जी.एल.ए. - ७९४ आदि.

कपासकी प्रति के अनुसार बोआई में दूरियाँ व प्रति हेक्टर पौधोंकी (अनुमानित) संख्या

क्रम   कपास की किसमें   बोआई पौंधोंकी परस्पर दुरी (सें. मी.)   पौंधोंकी संख्या / एकड    
भारी जमीन     मध्यम जमीन   भारी जमीन     मध्यम जमीन    
१   बागायती संकरित बी. टी. किस्म   १८० x ३०   १५० x ३०   ७२६०   ८७००  
२   सुखैती संकरित बी. टी. किस्म   १५० x ३०   १२० x ३०   ८७००   १०८२०  
३   सुखैती संकरित बी. टी. किस्म   ६० x ३०   ६० x ३०   १४५२०   २१७८०  
४   समस्त अन्य संकरित किस्म   १५० x ६०   १२० x ६०   ४३५०   ५४४५  
५   समस्त अन्य संवर्धित किस्म   ६० x ३०   ६० x ३०   २१७८०   २१७८०  


खादें :
सतही खाद : अच्छे दर्जेकी ज्यादा उपजहेतु जरुरी है कि भूमिमें ४ - ६ % सेंद्रिय अन्न - तत्त्व हों। सुखैती कपासहेतु २५ गाडियाँ (१२५.५ टन) व बागायती कपासहेतु ५० गाड़ियॉ (२५ टन) अच्छी सडी कम्पोस्ट । गोबरकी खाद अंतिम पलटेसे पूर्व जमीन में मिलावें या बोआईके २० - २५ दिन बाद ५ टन केंचुएकी खाद जमीन में मिलावें ।

कल्पतरू सेंद्रिय खाद: बिज बोनेके हर स्थल पर ५० ग्रॅम कल्पतरू सेन्द्रिय मिट्टी के ढेरके साथ कर उसिमें १ बीज खोंप दें । १ ली निराई होनेपर कल्पतरू सेंद्रिय खाद १०० किलोग्रॅम / एकड दें, ऐसा करनेसे (निम्नांकित) रासायनिक खादकी गर्ज ५० से घटती है, ये तथ्य सप्रमाण दिखाया जा चुका है -

ऊपरी खादें : कपासकी पौध अपनी वृद्धिदशाओंमें निम्न अन्न - तत्त्वों का जमीन ग्रहण करता है
क्रम   पौधकी वृद्धिदशा   नत्र %   स्फुरद %   पालाश %  
१)   ७ से १० दिन आयु के पौध की अवस्था   ४.४   २.५   ३  
२)   ३० ते ४५ दिन आयुके (पौध की पत्तियाँ आनेकी दशा)   १२.८   ७.८   १३.८  
३)   ६० ते ७० दिन आयु के (पौध की पत्तियाँ आनेसे कोये आनेकी दशा)   ४३.३   ३४   ३४.७  
४)   कोयोंमें बीज आने से लेकर (बिनौले जैसे) पक्व होने तक दशा   ३९.५   ३७   ४७.५  

मौसमपूर्व कपासहेतु खाद की मात्रा : बी.टी. किस्मों व् मौसमपूर्व कपास खेतीके लिये खादोंकी मात्रा (बोआई २० मई से ७ जून ) निम्नवत रखी जाएं:

१) बओईसे पूर्व नत्र २५ किलोग्रॅम + स्फुरद २५ किलोग्रॅम + पालाश ३५ किलोग्रॅम + गंधक १० किलोग्रॅम + मॅग्नेशियम सल्फेट १० किलोग्रॅम/एकड

२) बोआईके २५ दिनों उपरान्त नत्र (कॅल्शियम, अमोनियम, नायट्रेटके माध्यमसे) २५ किलोग्रॅम

३) बओईके ५० दिनों उपरान्त नत्र २५ किलोग्रॅम + पालाश ३५ किलोग्रॅम + गंधक १० किलोग्रॅम + मॅग्नेशियम सल्फेट १० किलोग्रॅम/एकड

४) बोआई के ७० दिनों उपरान्त नत्र (अमोनियम सल्फेटके माध्यमसे ) २५ किलोग्रॅम

मौसमी कपासहेतु खाद की मात्रा : बी. टी. किस्मों व् मौसमी कपास खेती के लिये खादोंकी मात्रा (बोआई ७ जून से ३० जून) निम्नवत रखी जाए।

१) बोआई पूर्व नत्र १५ किलोग्रॅम + स्फुरद ३० किलोग्रॅम + पालाश २० किलोग्रॅम + गंधक १० किलोग्रॅम + मॅग्नेशियम सल्फेट १० किलोग्रॅम/एकड

२) बोआईके २५ दिनों उपरान्त नत्र (कॅल्शियम, अमोनियम, नायट्रेटके माध्यमसे) १५ किलोग्रॅम/एकड.

३) बोआईके ५० दिनों नत्र १५ किलोग्रॅम + पालाश २० किलोग्रॅम + मॅग्नेशियम सल्फेट १० किलोग्रॅम/एकड

४) बोआई के ७० दिनों उपरान्त नत्र (अमोनियम सल्फेटके माध्यमसे ) १५ किलोग्रॅम/एकड

बूँद - सिंचनद्वारा फ़सलहेतु जरूरी पानीकी मात्राके निर्धारणमें विचारणी तत्त्व: फ़सल, उसकी आयु, जमीनकी कोटि, भूमि सतहसे होते बाष्पीभवन का प्रमाण, पत्तियों से होता उत्सर्जन, जड़ो का फैलाव, २ पौधों के बिच की दूरी और २ पंक्तियों के बीच की दूरी, हवामें नमीका प्रमाण और हवाके बहवामें तेजी आदि ।

बूँद -सिंचन संयंत्रका रखरखाव : समग्र संयंत्रका तय समयपर (जाँच के लिये) अवलोकन, फिल्टरकी तय कालावाधिमें सफाई, रासायनिक प्रक्रियाएं समय समयपर - कराना - जलीय क्षार, सूक्ष्मजीव, शैवालादिसे संयंत्रमें जलप्रवाह अवरूद्ध होता है, अनके कब्जेहेतु रासायनिक प्रक्रियाएं जरूरी हैं । नलिकाओंकी हफ्तेमें १ बार सफ़ाई हो, कोई क्षरणस्थल दिखें, तो उन्हें सुधार लें, टोटियों (Dripper) से जलप्रवाह का निरीक्षणभी हो।

यदि बूँदसिंचन पद्धती अपनानेका मानस हो, तो जिस स्त्रोतसे वह सोचा हो, उसकी जाँच पूर्व मेंही कर लें, कि रासायनिक व् अन्य मानदण्डोंपर ये जल इस पद्धतिके लिये मुफ़ीद है या नही। जमीन तैयार करते हुए १२.५ टन अच्छी सडी कम्पोस्ट/ गोबरकी खाद मिलायें । बूँद - सिंचनसे जल देनेमें रासायनिक खादें मिलानेकी गुँजाइश है, अत: इस व्यवस्थाके बिच में Ventury प्रणाली का जोड़ा जाना उपयोगी है।

विशेष बातें : मृदा -परीक्षणके परिणामों पर निर्धारित खादोंकी मात्रा निम्नांकित पद्धतिसे दी जाए -

अ) नत्र व् पोटॅश प्रत्येकी १/३ मात्रा अंकुरणके समय बूँद -सिंचनद्वारा दी जानी चाहिये।

ब) स्फुरदकी ७० % मात्रा जमीन प्राथमिक मात्रा के रूपमें सुपर फॉस्फेट बूँद - सिंचनद्वारा देनी चाहिये।

क) ३० - ४० दिनोंपर स्फुरदकी ३० % मात्रा, २/३ भाग नत्र व् पोटॅश बूँद -सिंचनद्वारा ५ समान समयांतरोंमें विभाजित कर हर हफ्ते दें । नत्रहेतु पानीमें घुलनशील यूरिया, पालाशहेतु म्युरेट ऑफ पोटॅश जैसी खादे व् स्फुरद हेतु डाय अमोनियम फॉस्फेट पानीमें घोलकर, छानने के बाद प्रयोग में लाया जाए ।

डॉ। बवासकर तकनीक' में प्रयुक्त सप्तामृतभी बूँद - सिंचन पद्धतिद्वारे कपासकी खेतीमें दे सकते हैं। सही विधि जानने हेतु हमारे यहाँ के कृषिविज्ञान विशेषज्ञोंसे मशविरा कर इसे अपना सकते हैं।

एकात्मिक तृण नियंत्रण : इसमें डंक भरना, पौधों की सघनता कम करना, निराई, गोड़ाई, तृणनाशक दवओंका प्रयोग करना ये सामान्यत: महत्त्वपूर्ण तरीके हैं। आरम्भमें कपास पौधे अत्यंत धीमी गतिसे बढते हैं। इसीबीच खरपतवारका प्रसार जोरोंसे होगा। अत: ६० दिनोंतक तृणविस्तार घना होता है। जो समय रहते नियंत्रित न हो, तो अत्याधिक हानि देता है। तृणपर नियंत्रण तीनों तरीकोंसे हो, ऐसी निराई कृषि मजदूरोंसे २ - ३ बार कराके पूरा खेत तृणरहित रखना चाहिये । पौधोंके बीच गोडाईहेतु पुन: पुन: हलसे जमीन फोडना आवश्यक है। १ ली बार हलपर खड़े हों। तोभी रूई वृद्धिको क्षति पहुँचे इतनी ऊँचाई पौधोंमें नहीं होती, किन्तु बादमें हल चलना हाथके बलसे हो । हलसे २ गोड़ाईयोंमें १५ - २१ दिनोंका अंतर रखें । हस्त नक्षत्रके प्रथम चरण में वर्षा हो, तो जमीन कड़ी होती है, कपास लाल रंगकी हो सकती है, किन्तु हस्तसे पूर्व की गई हल्की गोड़ाईसे इसकी रोकथाम होती हैं।

पुराने पत्ते तोडना :६० दिनों का पौधा होनेतक उसपर ११ - १३ शाखाएं रहेंगी, शीर्ष ३ टहनियाँ छोड, शेष शाखों की उठानसे पुराने पत्ते हटा दें। इससे ८ - ११ पत्ते अलग होंगे, जिन्हें खेतमेंही गिरे रहने दें । ऐसा करनेसे उत्पादनमें २० % वृद्धि होगी। पेड /पौधा अनावृत्त होकर पुराने पत्तों की ओटमें पलते कीटकों, रोगोंसे निवृत्ति मिलेगी । प्राय : पूरा तना व शाखाएं सूर्यप्रकाशित होनेसे कोये लगनेमें उडचन नहीं होगी। जल व्यवस्थापन: उत्पादनकी दृष्टिसे कपास बढतकी प्रक्रियामें ४ नाजुक दशाएं है:

१) पौधावस्था : बोआई से २५ दिनोंतककी आयुमें जलकी उपलब्धता अपर्याप्त रहे, तो पौधेकी बढत रूकसी जाती है, शाखाओं में विभाजन कम व भविष्यमें भी कमही कोये निकलने की गुँजाइश रहती है।

२) पातें झरना बोआई से ४० - ४५ दिनोंकी आयुमें पूरी मात्रामें जल न मिले, तो पत्ते स्वयंही झडने लगते हैं, फळत: बादमें कोये कम आते हैं ।

३) बौर निकलना बोआईसे ७५ -९० दिनोंकी अवस्था में जल कम मिले, तो पत्तों के साथ फुलभी झडते हैं और कोये कम रह जाते हैं ।

४) कोयोंकी बढत : बोआईसे ११५ -१२५ दिनोंकी आयुमें पानी पर्याप्त न मिले, तो स्वस्थ दशा व संख्या में कोये नही आते ।

बूँद - सिंचन पद्धतिद्वारा जल - व्यवस्थापन : इसके लिये पौधोंके बीचकी दूरी उचित होना जरूरी है।

१) १५० से.मी. x ३० से.मी., १८० से.मी. x ३० से.मी., १२० से.मी. x ६० से.मी. x ३० से.मी., १५० से.मी. x ६० से.मी. x ३० से.मी. घनता की इन दूरियों में पौध रोपाई से बूँद - सिंचनपर होते व्यय सीमित रखा जा सकता है।

२) २ - २ पंक्तियों की रोपाई में शाखों की उठानसे पुराने पत्ते अलग करना, पौधे ६० दिन आयुके होते ही आरम्भ करना, पौधे ६० दिन आयुके होते ही आरम्भ करना होगा।

३) सदा सीधी नलिका (Inliner) प्रयुक्त हो, यद्यपि आडी नलिका (Lateral) पर ३० से.मी.दुरीपर टोटी (Dripper) रहें ।

मौसमपूर्व कपासहेतु बूँद -सिंचन पद्धतिद्वारा महिनेवार (औसतन) जल - वितरण मात्रा

क्रम   महिना   जल की आवश्यकता
लिटर/पौधा/दिन  
महिना   जल की आवश्यकता
लिटर/पौधा/दिन  
१)   मई (बोआई मानते)   १.१३२   अक्तूबर  ७.१००  
२)   जून   १.६००  नवम्बर   ४.७५०  
३)   जुलै   २.२१०   दिसम्बर   ३.२६०  
४)   अगस्त   ३.६०५   जनवरी   ३.३१०  
५)   सितम्बर   ५.५००   फरवरी   ३.६१०  


कपास की उच्च श्रेणी व ज्यादा उपज लेनेहेतु डॉ. बावसकर तकनीक से 'सप्तामृत' का छिड़काव :

१) प्रथम छिड़काव : (अंकुरणके १० - १५ दिनोंमें): जर्मिनेटर २५० मिली.+ कॉटन थ्राइव्हर २५० मिली. + क्रॉंपशाइनर २५० मिली.+ प्रोटेक्टण्ट १०० ग्रॅम + प्रिझम १०० मिली. + हार्मोनी १०० मिली का घोल १०० लि.पानी.

२) द्वितीय छिड़काव :(अंकुरण के ३० - ४० दिनोंबाद): जर्मिनेटर ५०० मिली.+ कॉटन थ्राइव्हर ५०० मिली. + क्रॉंपशाइनर २५० मिली.+ प्रोटेक्टण्ट २५० ग्रॅम + प्रिझम २५० मिली. + हार्मोनी १५० मिली का घोल १५० लि.पानी में

३) तृतीय छिड़काव : (अंकुरण के ५० - ५५ दिनोंबाद ): कॉटनथ्राइव्हर ७५० मिली. + क्रॉंपशाइनर ७५० मिली.+ राइपनर ५०० मिली.+ प्रोटेक्टण्ट ५०० ग्रॅम + प्रिझम ५०० मिली. + न्युट्राटोन ५०० मिली. + हार्मोनी ३०० मिली. का घोल २०० लि.पानी में

४) चतुर्थ छिड़काव : (अंकुरण के ७० - ७५ दिनोंबाद): कॉटन थ्राइव्हर १ लिटर + क्रॉंपशाइनर १ लिटर + राइपनर ७५० मिली.+ प्रोटेक्टण्ट ५०० ग्रॅम + न्युट्राटोन ५०० मिली. + हार्मोनी ३०० मिली. का घोल २०० लि.पानी में

५) पंचम छिड़काव :(अंकुरण के ९० - १०५ दिनोंबाद): कॉटन थ्राइव्हर १ लिटर + क्रॉंपशाइनर १ लिटर + राइपनर १ लिटर + न्युट्राटोन १ लिटर + हार्मोनी ३०० - ४०० मिली. का घोल २०० लि.पानी में

कपास की 'यथास्थिति (खोडवा) में डॉ. बावसकर तकनीक निम्नवत निम्नवत प्रयोग में लाएं
कल्पतरू सेंद्रिय खाद १०० किलोग्रॅम /एकड दें।


१) प्रथम छिड़काव : जर्मिनेटर १ लिटर + कॉटन थ्राइव्हर १ लिटर + क्रॉंपशाइनर १ लिटर + प्रिझम १ लिटर का घोल २०० लि.पानी में छिड़काव

२) द्वितीय छिड़काव : प्रथम छिड़कावके २१ - ३० दिनों बाद कॉटन थ्राइव्हर १ लिटर + क्रॉंपशाइनर १ लिटर + न्युट्राटोन १ लिटर का घोल २५० लि.पानी में छिड़काव

३) तृतीय छिड़काव :(कोये अच्छीतरह पुष्ट हों, शुभ्र सफेद दीर्घ धागेयुक्त 'ए' ग्रेड कपास मिले इस इस आशयसे) कॉटन थ्राइव्हर १ लिटर + क्रॉंपशाइनर १ लिटर + राइपनर १ लिटर + न्युट्राटोन १ लिटर का घोल २०० लि.पानी में छिड़काव

उपरोक्त तंत्रज्ञान के अनुकरणसे विदर्भ, मराठवाडा, खानदेश जेसे इलाकोंमें कपासके ठूंठोंसे अच्छी सी उपज ली गई है, जिसके सन्दर्भ उपलब्ध हैं ।

कपास में लालिया रोग का प्रकोप : पत्तोंकी किनार हल्का लाल रंग लेने लगाती है, शीर्ष पत्तेभी लाला होकर मुरजाते और झड जाते हैं । यह रोग सूक्ष्मजीवसे होने / फैलनेवाला नही, बल्कि खास - अन्न तत्त्वोंके अभावसे होती है। उच्च उत्पादकता युक्त संकर व बी.टी.किस्मोंकी बोआई हलके जातिकी जमींनमें की गयी हो, तो अन्न - तत्त्वों की कमी से लालिया (ये शारीरिक दोष) कपासमें देखा जाता हैं। जल रुके ऐसी जमीनमें कपास की बोआई करें, तो नत्र तत्त्वका ग्रहण करने में पौधे अवरूध्द होते हैं। वृद्धि मंद होकर पत्ते लाल होते है। आम तौरपर फूल खिलनेसे कोये लगनेके कालतक नत्रकी कमी से उपरोक्त लक्षण दिखते हैं। बी.टी. किस्मोंके लिये निर्धारिक खादकी पूर्ति न हो, तो पौधे के शीर्ष पत्ते निजी विकासहेतु जरूरी तत्त्व निचले पत्तों से लेते हैं और इसतरह निचले पत्ते लाल होते हैं। मॅग्नेशियम इस सूक्ष्मतत्त्वकी कमी भी पत्ते लाल बनाती है। सहसा गर्म हवाएं चलें, दिन व् रात्रिके तापमान में बडा अंतर रहेतोभी पत्ते लाला होते हैं। १ ली जमीन पर बारबार कपास की फ़सल लें। तो अन्नद्रव्योंकी मात्रामें कमी आकर पौधे पर्याप्त पर्याप्त अन्नद्रवसे वंचित रहने है। और लालिया रोग होता है। इनके अलावा अन्नरस चूसते कीटोंके हमलेसे पत्ते लाला होते हैं।

लालियापर उपाययोजना : निर्धारित मात्रामें खादकी आपूर्ति हो। रोपाईमें पौधों व् पंक्तियोंके बीच दूरी सिफ़ारिश के अनुसार रहे। संकर व बी.टी. किस्मोंकी बोआई हल्क़ी जमीनमें न करें । जल रुके ऐसी जमीनमें क़पास की बोआई करें। पत्ते व् फूल तैयार होनेकी अवस्थामें जर्मिनेटर ३ मि .लि., थ्राइव्हर ३ मि.लि., हार्मोनी १.५ मि .लि./लिटर पानीमें घोलकर छिड़काव किया जाए। कोये तैयार होनेकी दशामें थ्राइव्हर ३ मि .लि., क्रॉंपशाइनर ३ मि .लि., राइपनर २ मि.लि., न्युट्राटोन २ मि.लि., हार्मोनी १.५ मि .लि./लिटर पानी में घोलके छिड़काव करें। लालियाके लक्षण दिखतेही १ % मॅग्नेशियम सल्फेटका घोल छिड़काव अथवा मॅग्नेशियम सल्फेट २० - ३० किलोग्रॅम/ हेक्टर जमीनमें मिलाएं । कीट नियंत्रण हेतु सिन्थेटिक पायरेथ्रॉइडसका प्रयोग कमसे कम हो । कपास की बोआई के ५० - ७० दिनोंबीच सायकोसिल २ मि.लि.पानी में छिड़काव से दें । वर्षाने बडे लम्बे अर्से के लिये अनिश्चितता रखी हो, तो उपलब्ध जलस्त्रोतोंसे बस उतनाही जल दें, जिसके निकासीका प्रबंधभी हो। जलनिकासीपर ध्यान रहा, तो खेतमें पानी रूका न रहेगा।

कपास की चुनाई : ३० -४० % कोये खुल जानेपर खेतको पानी देना रोक दें । कपास चुनना सुबहके समय हो । चुनते समय रोगग्रस्त, कौडीनुमा व् पीले रंगका उत्पादन अलग इकट्ठा करें । अगली चुनाई १५ - २० दिनोंके अंतराल से करें । पूर्णतया परिपक्व व् पूरीतरह खिले कोयोंसेही कपास चुनाई हो। चुनते समय प्लॅस्टिकके बोरोंका प्रयोग न किया जाए ।

कपास का संग्रहण करना : खेतके बंधेसे घास काँटीकूडा न लगे इसका रखे । चुनाईके बाद २ - ३ दिन कपासको सूखनेका मौका दें । हर चुनाई का माल अलग - अलग व् किस्मवार पृथक रखें । संग्रह स्थल साफ व् खुला हो । धूल, धुअाँ और चूहोंसे कपासकी रक्षा करना महत्त्वपूर्ण हैं।

कपास की बिक्री : हर चुनाईकी कपास अलग व् किस्मवार हाटमें बिकने जाए । हल्कासा गीलापन लिये कपास की विक्रीका प्रयास न हो। विक्रीहेतु ले जाते समय कपास पर पानी के छीटे न मारे जाएं। अंतिम चुनाईकी कपास सबसे अंतमें हाटपर लाया जाए।